भ्रष्टाचार-कारण एवं निवारण पर निबंध

भूमिका: भ्रष्टाचार दो शब्दों- ‘भ्रष्ट’ और ‘आचार’ के मेल से बना शब्द है। ‘भ्रष्ट’ शब्द के कई अर्थ होते हैं- मार्ग से विचलित, ध्वस्त एवं बुरे आचरण वाला
तथा ‘आचरण’ का अर्थ चरित्र’, ‘व्यवहार’ या ‘चाल-चलन’ है। इस तरह भ्रष्टाचार का अर्थ हुआ-अरचित व्यवहार एवं चाल-चलन। विस्तृत अर्थों में इसका तात्पर्य व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले ऐसे अनुचित कार्य या व्यवहार से है, जिसे वह अपने पद का लाभ उठाते हुए आर्थिक या अन्य लाभों को प्राप्त करने के लिए स्वार्थपूर्ण ढंग से करता है। इसमें व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्तिगत लाभ के लिए निर्धारित कर्त्तव्य की जान-बूझकर अवहेलना करता है।

भारत में भ्रष्टाचार की स्थिति: भारत में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं है। ऐतिहासिक ग्रन्थों में भी इसके प्रमाण मिलते हैं। चाणक्य ने अपनी पुस्तक ‘अर्थशास्त्र’ में भी विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचारों का उल्लेख किया है। आज धर्म, शिक्षा, राजनीति, प्रशासन, कला, मनोरंजन, खेलकूद इत्यादि क्षेत्रों में भ्रष्टाचार ने अपने पाँव फैला दिए. है। रिश्वत लेना-देना, खाद्य पदार्थों में मिलावट, मुनाफाखोरी, अनैतिक ढंग से धन-संग्रह, कानूनों की अवहेलना करके अपना स्वार्थ पूरा करना आदि भ्रष्टाचार के ऐसे रूप हैं, जो हमारे देश में व्याप्त हैं। विभिन्न राष्ट्रों में भ्रष्टाचार की स्थिति का आकलन करने वाली स्वतन्त्र अन्तर्राष्ट्रीय संस्था ‘ट्रांसपेरेन्सी इण्टरनेशनल’ द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार, 178 देशों की सूची में भारत काफी ऊपर है। इसका अर्थ यह निकलता है कि हमारा देश दुनिया के सर्वाधिक भ्रष्ट देशों में से एक है।

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भ्रष्टाचार के कारण: आज हर वर्ग में धन की लिप्सा बढ़ी है, इसके लिए उसे अनुचित मार्ग अपनाने में भी संकोच नहीं है। भ्रष्टाचार के अनेक कारण हैं- इनमें गरीबी, बेरोज़गारी, सरकारी कार्यों का विस्तृत क्षेत्र, महँगाई, नौकरशाही का विस्तार, लालफीताशाही, अल्प वेतन, प्रशासनिक उदासीनता, भ्रष्टाचारियों को सज़ा देने में देरी, अशिक्षा, अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धा, महत्त्वाकांक्षा, वरिष्ठ अधिकारियों का कनिष्ठ अधिकारियों पर दबाव इत्यादि मुख्य हैं।

भ्रष्टाचार से होने वाली हानियाँ: भ्रष्टाचार की वजह से जहाँ लोगों का नैतिक एवं चारित्रिक पतन हुआ है, वहीं दूसरी ओर देश को आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ी है। आज भ्रष्टाचार के फलस्वरूप अधिकारी एवं व्यापारी वर्ग के पास काला धन अत्यधिक मात्रा में इकट्ठा हो गया है। इस काले धन के कारण अनैतिक व्यवहार, मद्यपान, वेश्यावृत्ति, तस्करी एवं अन्य अपराधों में वृद्धि हुई है। भ्रष्टाचार के कारण लोगों में अपने उत्तरदायित्व से भागने की प्रवृत्ति बढ़ी है। देश में सामुदायिक हितों के स्थान पर व्यक्तिगत एवं स्थानीय हितों को महत्त्व दिया जा रहा है। सम्पूर्ण समाज भ्रष्टाचार की जकड़ में है। सरकारी विभाग भ्रष्टाचार के केन्द्र बिन्दु बन चुके हैं। कर्मचारीगण मौका पाते ही अनुचित लाभ उठाने से नहीं चूकते।

भ्रष्टाचार रोकने के उपाय: भ्रष्टाचार के कारण आज देश की सुरक्षा भी खतरे में है। अतः इस पर लगाम लगाना अत्यन्त आवश्यक है। वैसे तो भ्रष्टाचारियों के लिए भारतीय दण्ड संहिता में दण्ड का प्रावधान है। समय-समय पर भ्रष्टाचार को रोकने के लिए समितियाँ गठित की गईं, भ्रष्टाचार निरोधक कानून पारित किया गया, परन्तु इसे अब तक नियन्त्रित नहीं किया जा सका। इससे निजात पाने के लिए हमें गरीबी, बेरोज़गारी, पिछड़ापन आदि पर काबू पाना होगा। दण्ड प्रक्रिया और दण्ड संहिता में संशोधन कर कड़े कानून बनेकर उनका सख्ती से पालन करना होगा।

उपसंहार: भ्रष्टाचार देश के लिए कलंक है और इसको मिटाए बिना देश की वास्तविक प्रगति सम्भव नहीं है। भ्रष्टाचार से निपटने के लिए अन्ना हजारे के नेतृत्व में जनलोकपाल विधेयक की माँग की गई, जिसके कारण सरकार ने लोकपाल विधेयक संसद में पारित करा दिया है।

इसके अतिरिक्त, काले धन की स्वदेश वापसी की माँग कर रहे अनेक लोग इस दिशा में सार्थक प्रयास कर रहे हैं। ऐसे प्रयासों को जनसामान्य द्वारा यथाशक्ति समर्थन प्रदान करना चाहिए। समाज को यथाशीघ्र कठोर-से-कठोर कदम उठाकर इस कलंक से मुक्ति पाना नितान्त आवश्यक है अन्यथा मानव जीवन बद से बदतर होता चला जाएगा।

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