संकेत बिन्दु भूमिका, अनुशासन का महत्त्व, अनुशासन की आवश्यकता, अनुशासन की प्रवृत्ति का विकास करना, उपसंहार।
भूमिका: अनुशासन शब्द ‘शासन’ में ‘अनु’ उपसर्ग के जुड़ने से बना है, इस तरह अनुशासन का शाब्दिक अर्थ है- शासन के पीछे चलना। प्रायः माता-पिता एवं गुरुजनों के आदेशानुसार चलना ही अनुशासन कहलाता है, किन्तु यह अनुशासन के अर्थ को सीमित करने जैसा है। व्यापक रूप से देखा जाए तो स्वशासन अर्थात् आवश्यकतानुरूप स्वयं को नियन्त्रण में रखना भी अनुशासन ही है।
अनुशासन के व्यापक अर्थ में, शासकीय कानून के पालन से लेकर सामाजिक मान्यताओं का सम्मान करना ही नहीं, बल्कि स्वस्थ रहने के लिए शारीरिक नियमों का पालन करना भी सम्मिलित है। इस तरह, सामान्य एवं व्यावहारिक रूप में, व्यक्ति जहाँ रहता है, वहाँ के नियम, कानून एवं सामाजिक मान्यताओं के अनुरूप आचरण एवं व्यवहार करना ही अनुशासन कहलाता है।
अनुशासन का महत्त्व: मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसके लिए यह आवश्यक है कि वह समाज के सभी प्राणियों के साथ सांमंजस्य स्थापित करे। इसके लिए अनुशासन का होना अत्यन्त अनिवार्य है। अनुशासन के बिना किसी भी समाज में अराजकता का माहौल व्याप्त होना स्वाभाविक है। अनुशासनरहित समाज के सभी मनुष्यों को अनेक कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। अनुशासन के बिना आनन्ददायक तथा सुखी जीवन की कल्पना करना कठिन है। अनुशासन प्रत्येक संस्था की आवश्यकता है, फिर वह चाहे परिवार ही क्यों न हो। इसी तरह परिवार के सदस्य यदि अनुशासित न हो, तो उस परिवार का अव्यवस्थित होना स्वाभाविक है। इसी तरह सरकारी कार्यालयों में यदि कर्मचारी अनुशासित न हों, तो वहाँ भ्रष्टाचार का बोलबाला हो जाएगा। इस तरह स्पष्ट है कि अनुशासन के बिना न तो परिवार चल सकता है, न कोई संस्थान और न ही कोई राष्ट्र। अनुशासन किसी भी सभ्य समाज की मूलभूत आवश्यकता है। अनुशासन न केवल व्यक्तिगत हित, बल्कि सामाजिक हित के दृष्टिकोण से भी अनिवार्य है।
अनुशासन की आवश्यकता: अनुशासन न होने की स्थिति में चारों ओर अनुशासनहीनता व्याप्त हो जाती है और इसके दुष्प्रभाव स्पष्ट ही नज़र आने लगते हैं। अतः अनुशासन का होना अनिवार्य है। जैसा कि प्रारम्भ में बताया गया है, अनुशासन का अर्थ होता है- शासन के पीछे चलना, इस अर्थ से देखा जाए तो जैसा शासन होगा, वैसा ही अनुशासन होगा।
इस प्रकार यदि कहीं अनुशासनहीनता व्याप्त है, तो कहीं-न-कहीं इसमें अच्छे शासन का अभाव भी ज़िम्मेदार होता है। यदि परिवार के मुखिया का शासन सही नहीं है, तो परिवार में अव्यवस्था व्याप्त रहेगी ही। यदि किसी स्थान का प्रशासन सही नहीं है तो वहाँ अपराधों का ग्राफ स्वाभाविक रूप से ऊपर ही रहेगा। यदि राजनेता कानून का पालन नहीं करेंगे, तो जनता से उसके पालन की उम्मीद नहीं की जा सकती। यदि क्रिकेट के मैदान में कैप्टन स्वयं अनुशासित नहीं रहेगा, तो टीम के अन्य सदस्यों से अनुशासन की आशा करना व्यर्थ है और यदि टीम अनुशासित नहीं है, तो उसकी पराजय से उसे कोई नहीं बचा सकता। इसी तरह यदि देश की सीमा पर तैनात सैनिकों का कैप्टन ही अनुशासित न हो तो उसकी सैन्य टुकड़ी भी अनुशासित नहीं रह सकती परिणामस्वरूप देश की सुरक्षा निश्चित रूप से खतरे में पड़ जाएगी।
अनुशासन की प्रवृत्ति का विकास करना: अनुशासन मनुष्य की आन्तरिक चेतना का परिणाम होता है। अतः इस प्रवृत्ति का विकास करना उसके ही अधिकार क्षेत्र में है। यह स्मरण रहे कि स्वयं के साथ-साथ अपने बच्चों में भी अनुशासन की प्रवृत्ति का विकास करना मनुष्य का नैतिक कर्त्तव्य है।
बच्चे का जीवन उसके परिवार से प्रारम्भ होता है। यदि परिवार के सदस्य गलत आचरण करते हैं, तो बच्चा भी उसी का अनुसरण करेगा। परिवार के बाद बच्चा अपने समाज एवं स्कूल से सीखता है। यदि उसके साथियों का आचरण खराब होगा, तो इससे उसके भी प्रभावित होने की पूरी सम्भावना बनी रहेगी।
यदि शिक्षक का आचरण गलत है तो बच्चे कैसे सही हो सकते हैं? इसलिए यदि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे अनुशासित हों, तो इसके लिए आवश्यक है कि हम अपने आचरण में सुधार लाकर स्वयं अनुशासित रहते हुए बाल्यकाल से ही बच्चों में अनुशासित रहने की आदत डालें। वही व्यक्ति अपने जीवन में अनुशासित रह सकता है, जिसे बाल्यकाल में ही अनुशासन की शिक्षा दी गई हो। बाल्यकाल में जिन बच्चों पर उनके माता-पिता लाड़-प्यार के कारण नियन्त्रण नहीं रख पाते, वही बच्चे आगे चलकर अपने जीवन में कभी सफल नहीं होते।
अनुशासन के अभाव में कई प्रकार की बुराइयाँ समाज में अपनी जड़ें विकसित कर लेती हैं। नित्य-प्रति होने वाले छात्रों के विरोध-प्रदर्शन, परीक्षा में नकल, शिक्षकों से बदसलूकी अनुशासनहीनता के ही उदाहरण हैं। इसका परिणाम उन्हें बाद में जीवन की असफलताओं के रूप में भुगतना पड़ता है, किन्तु जब तक वे समझते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
उपसंहार: किसी भी मनुष्य की व्यक्तिगत सफलता में उसके अनुशासित जीवन की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। महात्मा गाँधी, स्वामी विवेकानन्द, सुभाषचन्द्र बोस, दयानन्द सरस्वती आदि का जीवन अनुशासन के कारण ही सफल तथा प्रेरणादायी बन सका। इसी तरह ही राष्ट्र की प्रगति भी उसके अनुशासित नागरिकों पर निर्भर होती है।
अतः यदि हम चाहते हैं कि हमारा समाज एवं राष्ट्र प्रगति के पथ पर निरन्तर अग्रसर रहे, तो हमें अनुशासित रहना ही पड़ेगा, क्योंकि जब हम स्वयं अनुशासित रहेगे, तब ही किसी दूसरे को अनुशासित रख सकेंगे। अनुशासन ही देश को महान् बनाता है, यह कोई अतिशयोक्ति नहीं, बल्कि वास्तविकता है। देश का नागरिक होने के नाते प्रत्येक व्यक्ति का देश के प्रति कुछ कर्त्तव्य होता है, जिसका पालन उसे अवश्य करना चाहिए, क्योंकि जिस देश के नागरिक अनुशासित होते हैं, वही देश निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकता है।