प्रस्तावना: ईश्वर ने सभी मनुष्यों को समान बनाया है और उनके रहने के लिए एक अच्छा वातावरण तैयार किया है। लेकिन मनुष्यों ने अपनी आदतों और कामों से इसे बिगाड़ दिया है। मनुष्य ने अपनी जाति, धर्म, और आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव करना शुरू कर दिया। वह सिर्फ उन्हीं लोगों के साथ समय बिताना पसंद करता है जो उसके समान होते हैं और दूसरों को नजरअंदाज करता है। इसके अलावा, इंसान ने जिस तरह से तकनीक का उपयोग किया है, उसने पर्यावरण को भी नुकसान पहुँचाया है। अब हमारे पर्यावरण की स्थिति बहुत बिगड़ चुकी है।
मानव और संस्कृति: संस्कृति का असर आदमी की सोच और जीवन जीने के तरीके पर बहुत होता है। किसी भी देश या समाज की संस्कृति उसके लोगों की सोच और आदतों को प्रभावित करती है। भारत की संस्कृति में बड़ों का आदर करना और परिवार के साथ मिलकर रहना बहुत अहम है। यहां पर बच्चे अपने माता-पिता के साथ रहते हैं, चाहे वे कितने भी बड़े क्यों न हो जाएं। भारतीय लोग सभी धर्मों और संस्कृतियों का सम्मान करते हैं और एक-दूसरे के साथ शांति से रहते हैं। हर संस्कृति अपने तरीके से इंसान के व्यक्तित्व को आकार देती है, जिससे समाज में विविधता बनी रहती है।
मनुष्य और पर्यावरण: मनुष्य ने जब प्रगति की, तो इसका असर पर्यावरण पर भी पड़ा। औद्योगिकीकरण और नए-नए उद्योगों के कारण जीवन में सुधार हुआ, लेकिन इसके साथ ही प्रदूषण भी बढ़ा। कारखाने और वाहन बढ़ने के कारण हवा, पानी और जमीन में प्रदूषण हुआ। प्रदूषण के कारण पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है और यह मनुष्य और अन्य जीवों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। प्रदूषण से कई बीमारियाँ भी फैल रही हैं, जो पूरी दुनिया के लिए चिंता का कारण बन गई हैं।
निष्कर्ष: अब समय आ गया है कि हम सोचें कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। हमें अपनी संस्कृति और पर्यावरण की रक्षा के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है। अगर हम इसी तरह बिना सोच समझे काम करते रहे, तो एक दिन हमारा ग्रह रहने के लिए भी सुरक्षित नहीं रहेगा। हमें अपनी आदतें बदलनी होंगी और पर्यावरण को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि हम अपने आने वाले पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और खुशहाल दुनिया छोड़ सकें।