रेल यात्रा पर निबंध: हिंदी निबंध

प्रस्तावना (Introduction)

यात्रा, पर्यटन, पिकनिक और सैर करना बहुत सामान्य बात है। बहुत से लोग रेल या बस से यात्रा करना पसंद करते हैं, क्योंकि यह उन्हें नई जगहें और अलग-अलग तरह के लोग देखने का मौका देता है।

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मेरा रेल यात्रा का अनुभव (My Train Journey Experience)

मेरा कॉलेज 10 जून को छुट्टियों के लिए बंद हो गया, और मैंने दिल्ली जाने का मन बनाया। मेरे बड़े भाई दिल्ली में रहते हैं, और उन्होंने मुझे उनके साथ कुछ दिन बिताने के लिए बुलाया था। तो मैंने अपना सामान पैक किया और स्कूटी से रेलवे स्टेशन के लिए निकल पड़ी। मेरे पिता जी मुझे स्टेशन तक छोड़ने आए थे। हम समय पर स्टेशन पहुँच गए थे। वहाँ टिकट के लिए लंबी लाइन लगी थी, जिसे देख मुझे घबराहट हुई। लेकिन हमने टिकट पहले से ही आरक्षित करवा लिया था, इसलिए मुझे राहत मिली।

वहाँ बहुत सारे लोग थे, अलग-अलग धर्म और जाति के लोग दिख रहे थे। ऐसा लगा जैसे भारत की विविधता वहाँ मौजूद हो। फिर हमारी ट्रेन आ गई। लोग सीट पाने के लिए इधर-उधर दौड़ रहे थे। कुली यात्रियों की मदद कर रहे थे और फेरीवाले जोर से चिल्ला रहे थे। वहाँ बहुत भीड़ थी। मेरे पिता ने मुझे आगे बढ़ाया और मैं अपनी सीट पर बैठ गई। उन्होंने मेरा सामान डिब्बे में रख दिया। ट्रेन ने धीरे-धीरे चलना शुरू किया। मैंने अपने पिता को हाथ से अलविदा कहा, और वो तब तक खड़े रहे जब तक ट्रेन नजर से ओझल नहीं हो गई। ट्रेन के चलते ही मैंने अपने भाई को सूचना दी कि मैं ट्रेन में बैठ गई हूं।

जल्द ही ट्रेन रफ्तार पकड़ने लगी। हम हरे-भरे खेतों के पास से गुजरने लगे। किसान अपने खेतों में काम कर रहे थे, और कुछ लोग जानवरों को चराने ले जा रहे थे। बच्चे ट्रेन को देखकर हमें अलविदा (बॉय) कर रहे थे। हम छोटे-छोटे शहरों से गुजर रहे थे, और ट्रेन कई पुलों से होकर गुजर रही थी। पेड़ पीछे की तरफ भागते हुए नजर आ रहे थे, और ऐसा लगता था जैसे पृथ्वी घूम रही हो। आसमान में बादल थे, और दृश्य बहुत सुंदर था।

हमारी ट्रेन तेज़ी से चल रही थी, और छोटे स्टेशनों पर नहीं रुक रही थी। जब रात हो गई, तो हम कानपुर पहुंचे। वहाँ मैंने चाय वाले से चाय खरीदी। रात में ट्रेन में चलने वाले लोगों की आवाजें सुनकर नींद नहीं आ रही थी। फिर मैंने हेडफोन लगाकर फिल्म देखी और सहारनपुर स्टेशन पर सो गई। मुझे पता ही नहीं चला कि कब सो गई, और जब आँखें खोली तो सुबह हो चुकी थी। हम सुबह करीब 9 बजे दिल्ली पहुंच गए थे। मेरे भाई पहले से स्टेशन पर मुझे लेने आए थे। उन्होंने मुझे बहुत अच्छे से स्वागत किया। दिल्ली रेलवे स्टेशन बहुत बड़ा था। हमने ऑटो रिक्शा लिया और घर के लिए निकल पड़े।

उपसंहार (Conclusion)

रेल से यात्रा करना बहुत ही सस्ता और आरामदायक होता है। मैंने हमेशा अपने माता-पिता के साथ यात्रा की है, लेकिन इस बार मुझे अकेले यात्रा करने का अनुभव हुआ। शुरुआत में मुझे बहुत डर लग रहा था और मेरे पिता भी नहीं चाहते थे कि मैं अकेले इतनी लंबी यात्रा करूं, क्योंकि सुरक्षा को लेकर चिंता थी। सही भी है, आजकल का माहौल लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं होता। फिर भी मैंने अपने डर पर काबू पाया और अकेले यात्रा करने का निर्णय लिया। और यह यात्रा मेरे लिए बहुत अच्छा और बदलने वाला अनुभव साबित हुआ।

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