संकेत बिन्दु प्रस्तावना, वृक्षों का ह्रास, वृक्षों के संरक्षण की आवश्यकता, वृक्षों का संरक्षण।
प्रस्तावना वृक्ष हमारे लिए अनेक प्रकार से लाभदायक होते हैं। जीवों द्वारा छोड़ीगई कार्बन डाइ-ऑक्साइड को ये जीवनदायिनी ऑक्सीजन में बदल देते हैं। इनकी पत्तियों, छालों एवं जड़ों से हम विभिन्न प्रकार की औषधियाँ बनाते हैं। इनसे हमे रसेदार एवं स्वादिष्ट फल प्राप्त होते हैं। वृक्ष हमें छाया प्रदान करते हैं। इनकी छाया में पशु-पक्षी ही नहीं, मानव भी राहत की साँस लेते हैं। जहाँ वृक्ष पर्याप्त मात्रा में होते हैं, वहाँ वर्षा की मात्रा भी अधिक होती है। वृक्षों की कमी सूखे का कारण बनती है। वृक्षों से पर्यावरण की खूबसूरती में निखार आता है। वृक्षों से प्राप्त लकड़ियाँ भवन-निर्माण एवं फ़र्नीचर बनाने के काम आती हैं। इस प्रकार, मनुष्य जन्म लेने के बाद से मृत्यु तक वृक्षों एवं उनसे प्राप्त होने वाली विभिन्न प्रकार की वस्तुओं पर निर्भर रहता है।
कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने पेड़-पौधों की महत्ता को समझते हुए कहा है
“पृथ्वी द्वारा स्वर्ग से बोलने का अथक प्रयास हैं ये पेड़”
वृक्षों का ह्रास: वृक्षों से होने वाले इन्हीं लाभों के कारण मनुष्य ने इनकी तेज़ी से कटाई की है। औद्योगिक प्रगति एवं वनोन्मूलन दोनों के कारण पर्यावरण अत्यन्त प्रदूषित हो गया है। वृक्ष पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त रखने में सहायक होते हैं। मनुष्य अपने लाभ के लिए कारखानों की संख्या में तो वृद्धि करता रहा, किन्तु उस वृद्धि के अनुपात में उसने पेड़ों को लगाने की ओर ध्यान ही नहीं दिया। इसके विपरीत उसने उनकी जमकर कटाई की।
“यदि मैं जान जाऊँ कि कल इस संसार का अन्त हो जाएगा, तब भी मैं अपना सेब का पेड़ अवश्य लगाऊँगा।” किंग मार्टिन लूथर की कही यह बात न केवल वृक्षों की उपयोगिता का वर्णन करती है, बल्कि पेड़-पौधों से उनके हार्दिक प्रेम को भी प्रदर्शित करती है। निःसन्देह पेड़-पौधों के महत्त्व को कभी भी कमतर नहीं आँका जा सकता, क्योंकि ये हमारे जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं। तभी तो हमारे देश में पेड़-पौधों की भी पूजा की जाती है। सन्त कबीर ने इनके महत्त्व को इस प्रकार व्यक्त किया है
“वृक्ष कबहुँ नहीं फल भखै, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर”
पर्यावरणविद् एवं वैज्ञानिक आजकल वृक्षारोपण पर अत्यधिक बल दे रहे हैं। उनका कहना है कि पर्यावरण सन्तुलन एवं मानव की वास्तविक प्रगति के लिए वृक्षारोपण आवश्यक है। वृक्षारोपण क्यों आवश्यक है? इसका उत्तर हमें तब ही मिलेगा जब हम वृक्षों से होने वाले लाभों से अवगत होंगे। इसलिए सबसे पहले हम वृक्षों से होने वाले लाभों की चर्चा करते हैं।
वृक्षों के संरक्षण की आवश्यकता: वृक्षारोपण पर्यावरण को सन्तुलित कर मानव के अस्तित्व की रक्षा करने के लिए आवश्यक है। “एक मेज़, एक कुर्सी, एक कटोरा फल और एक वायलन, भला खुश रहने के लिए और क्या चाहिए!” विश्व के महान् वैज्ञानिक अल्वर्ट आइन्स्टाइन ने अपने इस विचार को जिन महत्त्वपूर्ण चीज़ों से जोड़ा है, उनमें से प्रत्येक चीज़ का सम्बन्ध पेड़-पौधों से होना इनकी उपयोगिता को दर्शाता है। अतः हमें अपने और पर्यावरण के हितैषी पेड़-पौधों के साथ मित्रवत् व्यवहार करना चाहिए।
वृक्षों का संरक्षण: मनुष्य अपने विकास के लिए पेड़ों की कटाई एवं पर्यावरण का दोहन करता है। विकास एवं पर्यावरण एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, अपितु – एक-दूसरे के पूरक हैं। सन्तुलित एवं शुद्ध पर्यावरण के बिना मानव का जीवन कष्टमय हो जाएगा। हमारा अस्तित्व एवं जीवन की गुणवत्ता एक स्वस्थ प्राकृतिक पर्यावरण पर निर्भर होता है। विकास हमारे लिए आवश्यक है और इसके लिए प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग भी आवश्यक है, किन्तु ऐसा करते समय हमें सतत विकास की अवधारणा को अपनाने पर बल देना चाहिए। सतत विकास एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं में भी कटौती न हो। यही कारण है कि सतत विकास अपने शाब्दिक अर्थ के अनुरूप निरन्तर चलता रहता है। सतत विकास में सामाजिक एवं आर्थिक विकास के साथ-साथ इस बात का ध्यान रखा जाता है कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहे। सतत विकास में आर्थिक समानता, लैंगिक समानता एवं सामाजिक समानता के साथ-साथ पर्यावरण सन्तुलन भी निहित है।
उपरोक्त बातों के अतिरिक्त वृक्षारोपण की आवश्यकता निम्नलिखित बातों से भी स्पष्ट हो जाती है
औद्योगीकरण के कारण वैश्विक स्तर पर तापमान में वृद्धि हुई है, फलस्वरूप विश्व की जलवायु में प्रतिकूल परिवर्तन हुआ है। साथ ही समुद्र का जल स्तर उठ जाने के कारण आने वाले वर्षों में कई देशों एवं शहरों के समुद्र में जल-मग्न हो जाने की आशंका है।
जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, भूमि प्रदूषण एवं ध्वनि प्रदूषण में निरन्तर वृद्धि हो रही है। यदि इस पर नियन्त्रण नहीं किया गया, तो परिणाम अत्यन्त भयानक होंगे।
एन्वायर्नमेण्टल डाटा सर्विसेज़ की रिपोर्ट के अनुसार, नागरिक एवं राष्ट्रों की सुरक्षा, भोजन, ऊर्जा, पानी एवं जलवायु इन चार स्तम्भों पर निर्भर है। ये चारों एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं और ये सभी खतरे की सीमा को पार करने की कगार पर हैं। अपने आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए मानव विश्व के संसाधनों का इतनी तीव्रता से दोहन कर रहा है कि पृथ्वी के जीवन को पोषित करने की क्षमता तेज़ी से कम होती जा रही है।