संकेत बिन्दु आतंकवाद का अर्थ, भारत में आतंकवाद के रूप में नक्सलवाद, आतंकवाद को पड़ोसी देशों का समर्थन, प्रगति में बाधक, वैश्विक समस्या, समाधान, उपसंहार
आतंकवाद का अर्थ आतंक की कोई विचारधारा नहीं होती, इस कारण इसे ‘आतंकवाद’ कहना गैर-जरूरी है, किन्तु सामान्य बोलचाल तथा सम्प्रेषण के लिए इस शब्द का प्रयोग सर्वथा अनुचित नहीं है। हिंसा तथा आतंक के पीछे निहित स्वार्थ हो सकता है। यह उद्देश्य प्राप्ति या जनसामान्य के विकास के लक्ष्य से सम्बन्ध नहीं रखता, बल्कि यह वर्चस्ववाद की नीति का आयाम है। आज हमारा देश आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है। वास्तव में, आतंकवाद वैश्विक रूप धारण कर चुका है। यह धर्म, सम्प्रदाय तथा समुदाय की आड़ में कतिपय कुत्सित विचार वाले लोगों की मानसिकता का परिणाम है।
भारत में आतंकवाद के रूप में नक्सलवाद ‘आतंकवाद’ भारत में कोई पुरानी समस्या नहीं है। आजादी के बाद लोकतन्त्र ने अभिव्यक्ति की जो परम्परा दी, उसमें अपनी जगह न बना पाने की जद्दोजहद में कुछ असामाजिक तत्त्वों ने आतंक का रास्ता अपना लिया। देश की राजनीतिक तथा सामाजिक प्रक्रिया भी इसमें जिम्मेदार रही है। समाज की विषमता तथा आर्थिक विभाजन ने एक पूरे वर्ग को हिंसा का रास्ता अपनाने को विवश किया। किसान-मजदूरों की समस्या ने ‘नक्सलवाद’ को उभारा। आज ‘नक्सलवाद’ एक हिंसात्मक आन्दोलन की तरह फैल चुका है, किन्तु हम नक्सलवाद को सीधे तौर पर आतंकवाद नहीं कह सकते हैं। यह एक उद्देश्य के लिए संघर्ष है। आज भारत में ‘नक्सलवाद’ को अधिक बड़ा खतरा मानकर उसके विरुद्ध बड़े-बड़े ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं। हमारी सेना देश के बाहर जाकर भी नक्सलवादियों का सफाया कर रही है, किन्तु आतंकवाद की खतरनाक तथा विध्वंसक प्रक्रिया पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है।
आतंकवाद को पड़ोसी देशों का समर्थन भारत में आतंकवाद क्षेत्रीय तथा साम्प्रदायिक आधार ले चुका है। यह किसी विशेष उद्देश्य के बजाय देश को मात्र अस्थिर रखने की चाल के साथ संचालित है, जिसे हमारे पड़ोसी देशों का समर्थन प्राप्त है। कश्मीर, असम तथा अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में कई आतंकी गुट अपनी कार्रवाइयों को अंजाम दे रहे हैं। कश्मीर में इस्लामी कट्टरपन्थी आतंकी गुट सक्रिय हैं, जिन्हें पाकिस्तान की खुफिया एजेन्सी आई एस आई का समर्थन प्राप्त है। यह एजेन्सी आतंकवादियों को प्रशिक्षण तथा धन उपलब्ध कराती है। असम में सक्रिय ‘उल्फा’ जैसे आतंकी संगठन को बांग्लादेश के आतंकी गुटों का समर्थन प्राप्त है। उल्फा बांग्लादेश में अपने ठिकानों से ही कार्रवाई का संचालन कर रहा है।
प्रगति में बाधक आतंकवाद की समस्या भारत की प्रगति में बाधक है। यह लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए चुनौती है। भारत के विभिन्न शहरों में हुई आतंकवादी घटनाएँ यह प्रमाणित कर चुकी हैं कि आतंकवादी कहीं भी, कभी भी अपने कुत्सित मकसद को पूरा करने में सफल हो सकते हैं।
मुम्बई में वर्ष 1993 का बम विस्फोट, ताज होटल पर हमला, दिल्ली में सीरियल विस्फोट, संसद पर हमला, वाराणसी के संकटमोचन मन्दिर परिसर में विस्फोट, वर्ष 2002 में गुजरात में अक्षरधाम मन्दिर पर आतंकियों का हमला, गुरुदासपुर के दीनानगर में हुआ आतंकी हमला और हाल ही में वर्ष 2016 में पठानकोट में हुआ विस्फोट आदि घटनाएँ वास्तव में हमारी सुरक्षा प्रणाली के लिए चुनौती हैं। निर्दोष नागरिकों की जान लेने वाले केवल भय तथा अशान्ति की प्रक्रिया को अंजाम देना चाहते हैं। यह मानवीय क्रूरता का उदाहरण है। आज देश का कोई शहर आतंकवाद से सुरक्षित नहीं है।
वैश्विक समस्या आतंकवादियों ने देश के कोने-कोने में अपना नेटवर्क स्थापित कर लिया है। यदि सरकार आतंकवाद को समाप्त करने की किसी ठोस नीति को क्रियान्वित नहीं करती, तो इसे नियन्त्रित करना भी कठिन हो जाएगा। आज आतंकवाद न केवल भारत वरन् पूरे विश्व के लिए एक समस्या बन गया है। इसने दुनिया के लोगों में खौफ पैदा करने का अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया है। इस वैश्विक समस्या से संघर्ष करने के लिए विभिन्न देशों के बीच आपसी समन्वय बनाने की आवश्यकता है।
समाधान आतंकवाद को नियन्त्रित करना कठिन नहीं है। इसके लिए ठोस कार्यनीति बनाकर उसके क्रियान्वयन की जरूरत है। धर्म तथा सम्प्रदाय के नाम पर आतंक फैलाने वाले गुटों को जवाब देने के लिए धार्मिक रूप से सहिष्णु लोगों को आगे आना होगा। शक्ति तथा संसाधनों के माध्यम से आतंकियों के इरादों को ध्वस्त किया जा सकता है। इस समस्या से निपटने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय की भी आवश्यकता है।
उपसंहार महावीर, बुद्ध, गुरुनानक, महात्मा गाँधी जैसे महापुरुषों को जन्म देने वाली इस पुण्य भारत-भूमि पर आतंकवाद कलंक का टीका है। हम सभी भारतवासियों को इसे समूल नष्ट करने का संकल्प लेकर फिर से देश को सत्य, अहिंसा एवं शान्ति की तपोभूमि बनाना होगा, तभी भारत और विश्व का कल्याण सम्भव है।