मेरी प्रिय पुस्तक पर हिन्दी में निबंध

मेरी प्रिय पुस्तक : रामचरितमानस

संकेत बिन्दु प्रस्तावना, पुस्तक की विशेषताएँ, उपसंहार।

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प्रस्तावना किसी भी देश की सभ्यता-संस्कृति के संरक्षण एवं उसके प्रचार-प्रसार में पुस्तकें अहम् भूमिका निभाती हैं। पुस्तकें ज्ञान का संरक्षण भी करती हैं। यदि हम प्राचीन इतिहास के बारे में जानना चाहते हैं, तो इसका अच्छा स्रोत भी पुस्तकें ही हैं।

पुस्तकें शिक्षा का प्रमुख साधन तो हैं ही इसके साथ ही इनसे अच्छा मनोरंजन भी होता है। पुस्तकों के माध्यम से लोगों में सवृत्तियों के साथ-साथ सृजनात्मकता का विकास भी किया जा सकता है। पुस्तकों के इन्हीं महत्त्वों के कारण पुस्तकों से मेरा विशेष लगाव रहा है। पुस्तकों ने हमेशा एक अच्छे मित्र के रूप में मेरा साथ दिया है। मैंने अब तक कई पुस्तकों का अध्ययन किया है, इनमें से कई पुस्तकें मुझे प्रिय भी हैं; किन्तु सभी पुस्तकों में ‘रामचरितमानस’ मेरी सर्वाधिक प्रिय पुस्तक है। इसे हिन्दू परिवारों में धर्म-ग्रन्थ का दर्जा प्राप्त है।

पुस्तक की विशेषताएँ ‘रामचरितमानस’ अवधी भाषा में रचा गया महाकाव्य है। इसकी रचना गोस्वामी तुलसीदास ने सोलहवीं सदी में की थी। इसमें भगवान राम के जीवन का वर्णन है। यह महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत के महाकाव्य ‘रामायण’ पर आधारित है। तुलसीदास ने इस महाकाव्य को सात काण्डों में विभाजित किया है। इन सात काण्डों के नाम हैं- ‘बालकाण्ड’, ‘अयोध्याकाण्ड’, ‘अरण्यकाण्ड’, ‘किष्किन्धाकाण्ड’, ‘सुन्दरकाण्ड’, ‘लंकाकाण्ड’ एवं ‘उत्तरकाण्ड’।

‘बालकाण्ड’ में ‘रामचरितमानस’ की भूमिका, राम के जन्म के पूर्व घटनाक्रम, राम और उनके भाइयों का जन्म, ताड़का वध, राम विवाह का प्रसंग आदि का बड़ा मनोरम वर्णन है। ‘अयोध्याकाण्ड’ में राम के वैवाहिक जीवन, राम को अयोध्या का युवराज बनाने की घोषणा, राम को वनवास, राम का सीता एवं लक्ष्मण सहित वन में जाना, दशरथ की मृत्यु, राम-भरत मिलाप इत्यादि घटनाओं का वर्णन है। ‘अरण्यकाण्ड’ में राम का वन में सन्तों से मिलना, चित्रकूट से पंचवटी तक उनकी यात्रा, शूर्पणखा का अपमान, खर-दूषण से राम का युद्ध, रावण द्वारा सीता का हरण इत्यादि घटनाओं का सजीव वर्णन है। ‘किष्किन्धाकाण्ड’ में राम-लक्ष्मण का सीता को खोजना, राम-लक्ष्मण का हनुमान से मिलना, राम व सुग्रीव की मैत्री, बालि का वध, वानरों के द्वारा सीता की खोज इत्यादि घटनाओं का वर्णन है। ‘सुन्दरकाण्ड’ में हनुमान का समुद्र लाँघना, विभीषण से मुलाकात, अशोक वाटिका में माता सीता से भेंट, रावण के पुत्रों का अशोक वाटिका में हनुमान से युद्ध, लंका दहन, हनुमान का वापस लौटना, हनुमान द्वारा राम को सीता का सन्देश सुनाना, लंका पर चढ़ाई की तैयारी, वानर सेना का समुद्र तट पहुँचना, विभीषण का राम की शरण में आना, राम का समुद्र से रास्ता माँगना इत्यादि घटनाओं का वर्णन है।
लंकाकाण्ड’ में नल-नील द्वारा समुद्र पर सेतु बनाना, वानर सेना का समुद्र पार कर लंका पहुँचना, अंगद को शान्ति-दूत बनाकर रावण की सभा में भेजना, राम व रावण की सेना में युद्ध, राम द्वारा रावण और कुम्भकरण का वध, राम का सीता से पुनर्मिलन इत्यादि घटनाओं का वर्णन है। ‘उत्तरकाण्ड’ में राम का सीता व लक्ष्मण सहित अयोध्या लौटना, अयोध्या में राम का राजतिलक, अयोध्या में रामराज्य का वर्णन, राम का अपने भाइयों को ज्ञान देना इत्यादि घटनाओं का वर्णन है।

‘रामचरितमानस’ में सामाजिक आदर्शों को बड़े ही अनूठे ढंग से व्यक्त किया गया है। इसमें गुरु-शिष्य, माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन इत्यादि के आदर्शों को इस तरह से – प्रस्तुत किया गया है कि ये आज भी भारतीय समाज के प्रेरणा-स्रोत बने हुए हैं। वैसे तो इस ग्रन्थ को ईश्वर (भगवान राम) की भक्ति प्रदर्शित करने के लिए लिखा गया काव्य माना जाता है, किन्तु जिस समय इस ग्रन्थ की रचना की गई थी, उस समय की सामाजिक दृष्टि से देखें, तो इसमें तत्कालीन समाज को विभिन्न बुराइयों से मुक्त करने एवं उसमें – श्रेष्ठ गुण विकसित करने की पुकार सुनाई देती है। सोलहवीं शताब्दी में इस ग्रन्थ की रचना की गई थी। यह वह समय था, जब भारत में मुगलों का शासन था। मुगलों के दबाव में हिन्दुओं को मुस्लिम धर्म स्वीकार करना पड़ रहा था। समाज में अनेक प्रकार की बुराइयाँ अपनी जड़ें जमा चुकी थीं। समाज ही नहीं परिवार के आदर्श भी एक-एक कर खत्म होते जा रहे थे। ऐसे समय में इस ग्रन्थ ने जनमानस को जीवन के लिए सभी आदर्शों की शिक्षा देकर समाज सुधार एवं अपने धर्म के प्रति आस्था बनाए रखने के लिए प्रेरित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

काव्य-शिल्प एवं भाषा के दृष्टिकोण से भी ‘रामचरितमानस’ बहुत समृद्ध है। यह आज की हिन्दी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य बना हुआ है। इसके छन्द और चौपाइयाँ आज भी जन-जन में लोकप्रिय हैं। अधिकतर हिन्दू घरों में इसका पाठ किया जाता है। तुलसीदास ने भारतीय जनमानस को जितना प्रभावित किया उतना न इससे पहले किसी काल में किसी ने किया था और अब तक भी आम आदमी को इस तरह प्रभावित करने वाले काव्य की रचना नहीं की जा सकी है।

उपसंहार जीवन के हर सम्बन्धों पर आधारित ‘रामचरितमानस’ के दोहे एवं छन्द आम जन में अभी भी कहावतों की तरह लोकप्रिय हैं। लोग किसी भी विशेष घटना के सन्दर्भ में इन्हें उद्धृत करते हैं। लोगों द्वारा प्रायः उद्धृत किए जाने वाले दोहे की एक पंक्ति का उदाहरण देखिए, जो ‘रामचरितमानस’ से लिया गया है-

“सकल पदारथ ऐहि जग माहि, करमहीन नर पावत नाहि।”

‘रामचरितमानस’ को भारत में सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला ग्रन्थ माना जाता है। विदेशी विद्वानों ने भी इसकी खूब प्रशंसा की है। इसका अनुवाद विश्व की कई भाषाओं में किया गया है, किन्तु अन्य भाषा में अनूदित ‘रामचरितमानस’ में वह काव्य-सौन्दर्य एवं लालित्य नहीं मिलता, जो मूल ‘रामचरितमानस’ में है। इसको पढ़ने का अपना एक अलग आनन्द है। इसको पढ़ते समय व्यक्ति को संगीत एवं भजन से प्राप्त होने वाली शान्ति का आभास होता है। इसलिए भारत के कई मन्दिरों में इसका नित्य पाठ किया जाता है। हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में ‘रामचरितमानस’ की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रही है।

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