संकेत बिन्दु भूमिका, पुस्तकालय की विशेषताएँ, पुस्तकालय के विविध लाभ, भारत में पुस्तकालयों की स्थिति, उपसंहार।
भूमिका पुस्तकालय अर्थात् वह भवन, जहाँ अध्ययन हेतु पुस्तकों का संग्रह किया गया हो। पुस्तकों के रूप में ज्ञान का भण्डार संरक्षित करने के कारण इन्हें ‘ज्ञान-भण्डार गृह’ भी कहा जाता है। पुस्तकालयों में पुस्तकों के अतिरिक्त समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं को भी संगृहीत किया जाता है।
किसी भी व्यक्ति के लिए यह सम्भव नहीं है कि वह सारी पुस्तकों को खरीद कर पढ़ सके और प्रायः बहुत-सी प्राचीन पुस्तकें दुर्लभ होती हैं, इसलिए पुस्तकालयों की आवश्यकता महसूस हुई और इनका विकास किया गया। पुस्तकालय किसी भी देश की सभ्यता, संस्कृति तथा सुरुचि के प्रतीक होते हैं। इनके अभाव में ज्ञान का प्रचार-प्रसार तथा पुस्तकों का संरक्षण अत्यन्त कठिन हो जाता है।
पुस्तकालय की विशेषताएँ पुस्तकालय कई प्रकार के होते हैं; जैसे-सार्वजनिक पुस्तकालय, संस्थागत पुस्तकालय, वैयक्तिक पुस्तकालय, राजकीय पुस्तकालय, राष्ट्रीय पुस्तकालय इत्यादि। इसी के आधार पर इनकी विशेषताएँ भी अलग-अलग होती हैं। सार्वजनिक पुस्तकालय सभी लोगों के लिए खुला रहता है, जबकि संस्थागत पुस्तकालय किसी संस्था द्वारा विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संचालित किया जाता है। वैयक्तिक पुस्तकालय व्यक्तिगत प्रयोग के लिए होता है। प्रायः पुस्तक-प्रेमी तथा विद्याव्यसनी व्यक्ति व्यक्तिगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए वैयक्तिक पुस्तकालयों का निर्माण करते हैं। उनके लिए पुस्तकें घर रूपी शरीर की आत्मा होती हैं। साधारणतया एक अच्छे पुस्तकालय से यह अपेक्षा की जाती है कि वहाँ हर प्रकार की स्तरीय पुस्तकें हों। पुस्तकालयों में ऐसी पुस्तकें नहीं होनी चाहिए, जो मनुष्य के विकास में बाधक हों तथा व्यक्ति को सच्चा ज्ञान न दें। अश्लील सामग्री वाली पुस्तकों को पुस्तकालयों में नहीं रखा जाना चाहिए, इसके अतिरिक्त पुस्तकों की गुणवत्ता के दृष्टिकोण से पुस्तकों का चयन करते समय कुछ बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए; जैसे-पुस्तकें सजिल्द ही रखनी चाहिए, उनका कागज़ अच्छा हो, पृष्ठ कटे-फटे न हों, पुस्तक की छपाई स्पष्ट हो आदि।
पुस्तकालय के विविध लाभ पुस्तकालय समाज के प्रत्येक व्यक्ति के लिए लाभकारी होते हैं। पुस्तकालय अपने संगृहीत ज्ञान से सभी को कुछ-न-कुछ लाभ अवश्य प्रदान करते हैं। पुस्तकालय विद्यालयी एवं महाविद्यालयी विद्यार्थियों के लिए विशेष लाभप्रद होते हैं। पुस्तकालय शोधार्थियों के लिए भी ऐसी पुस्तकें उपलब्ध करवाते हैं, जो सामान्य तौर पर बाज़ार में नहीं मिल पातीं। पुरानी तिथियों के समाचार-पत्रों की आवश्यकता यदि किसी शोध कार्य या अन्य कार्यवश पड़ती है, तो ऐसी स्थिति में पुस्तकालय का ही सहारा लिया जाता है। पुस्तकालय केवल विद्यालयी एवं महाविद्यालयी विद्यार्थियों के लिए ही नहीं, बल्कि आम आदमी के लिए भी ज्ञान का स्रोत होते हैं। ये लोगों को सार्थक मनोरंजन प्रदान करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इससे लोगों के खाली समय का सदुपयोग भी होता है और उनका ज्ञान भी बढ़ता है।
भारत में पुस्तकालयों की स्थिति इस समय हमारे देश में पुस्तकालयों की स्थिति शोचनीय है। शिक्षा के प्रचार-प्रसार के बावजूद हमारे यहाँ जनसंख्या के अनुपात में पर्याप्त संख्या में पुस्तकालयों का अभाव है। शहरों के पुस्तकालयों को छोड़ दिया जाए तो ग्रामीण क्षेत्र में या तो पुस्तकालय हैं ही नहीं और यदि हैं भी तो वहाँ पुस्तकों का अभाव होता है एवं सूचना क्रान्ति से उनका दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं होता। देश के विकास एवं शिक्षा के प्रसार के लिए पर्याप्त संख्या में पुस्तकालयों की स्थापना करना आवश्यक है। इसके साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में जब इण्टरनेट के कारण ई-पुस्तकों का चलन बढ़ा है, तो ऐसी स्थिति में पुस्तकालयों एवं सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र को एक-दूसरे से जोड़ने की भी तत्काल आवश्यकता अनुभव की जा रही है।
उपसंहार पुस्तकालय किसी भी देश की अमूल्य निधि होते हैं। पुस्तकालय उसके सभ्य समाज के परिचालक होते हैं। अतः इनका पर्याप्त संख्या में होना आवश्यक है। पुस्तकालयों को वर्तमान सन्दर्भ में और अधिक उपयोगी एवं आधुनिक बनाने पर भी ज़ोर दिया जाना चाहिए और उनके नियमों का पूरी ईमानदारी से पालन करना चाहिए।