संकेत बिन्दु भूमिका, प्राचीन शिक्षा पद्धति, नैतिक शिक्षा का अर्थ, नैतिक शिक्षा की आवश्यकता, उपसंहार।
भूमिका मनुष्य जन्म से ही सुख और शान्ति के लिए प्रयत्न करता है। जब से सृष्टि का आरम्भ हुआ है वो तभी से ही अपनी उन्नति के लिए प्रयत्न करता आ रहा है लेकिन उसे पूरी तरह शान्ति सिर्फ शिक्षा से ही मिली है। शिक्षा के अस्त्र को अमोघ माना जाता है। शिक्षा से ही मनुष्य की सामाजिक और नैतिक उन्नति हुई थी और वह आगे बढ़ने लगा था।
मनुष्य को यह अनुभव होने लगा कि वह पशुतुल्य है। शिक्षा ही मनुष्य को उसके कर्तव्यों के बारे में समझाती है और उसे सच्चे अर्थों में इन्सान बनाती है। उसे स्वयं का और समाज का विकास करने का भी अवसर देती है।
प्राचीन शिक्षा पद्धति भारत को प्राचीन समय में सोने की चिड़िया कहा जाता था। प्राचीन समय में ऋषियों और विचारकों ने यह घोषणा की थी कि शिक्षा मनुष्य वृत्तियों के विकास के लिए बहुत आवश्यक है। शिक्षा से मानव की बुद्धि परिष्कृत और परिमार्जित होती है। शिक्षा से मनुष्य में सत्य और असत्य का विवेक जागता है। भारतीय शिक्षा का उद्देश्य मानव को पूर्ण ज्ञान करवाना, उसे ज्ञान के प्रकाश की ओर आगे करना और उसमें संस्कारों को जगाना होता है। प्राचीन शिक्षा पद्धति में नैतिक शिक्षा का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान होता है।
पुराने समय में यह शिक्षा नगरों से दूर जंगलों में ऋषियों और मुनियों के आश्रमों में दी जाती थी। उस समय छात्र पूरे पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करते थे और अपने गुरु के चरणों की सेवा करते हुए विद्या का अध्ययन करते थे। इन आश्रमों में छात्रों की सर्वांगीण उन्नति पर ध्यान दिया जाता था। उसे अपनी बहुमुखी प्रतिभा में विकास करने का अवसर मिलता था। विद्यार्थी चिकित्सा, नीति, युद्ध कला, वेद सभी विषयों में सम्यक होकर ही घर लौटता था।
नैतिक शिक्षा का अर्थ नैतिक शब्द ‘नीति’ में ‘इक’ प्रत्यय के जुड़ने से बना है। नैतिक शिक्षा का अर्थ होता है- नीति सम्बन्धित शिक्षा। नैतिक शिक्षा का अर्थ होता है कि विद्यार्थियों को नैतिकता, सत्यभाषण, सहनशीलता, विनम्रता, प्रमाणिकता सभी गुणों को प्रदान करना।
आज हमारे स्वतन्त्र भारत में सच्चरित्रता की बहुत बड़ी कमी है। सरकारी और गैर-सरकारी सभी स्तरों पर लोग हमारे मनों में विष घोलने का काम कर रहे हैं। इन सब का कारण हमारे स्कूलों और कॉलेजों में नैतिक शिक्षा का लुप्त होना है।
मनुष्य को विज्ञान की शिक्षा दी जाती है उसे तकनीकी शिक्षण भी दिया जाता है लेकिन उसे सही अर्थों में इन्सान बनना नहीं सिखाया जाता है। नैतिक शिक्षा ही मनुष्य की अमूल्य संपत्ति होती है और इस संपत्ति के आगे सभी संपत्ति तुच्छ होती हैं। इन्हीं से राष्ट्र का निर्माण होता है इन्ही से देश सुदृढ़ होता है।
नैतिक शिक्षा की आवश्यकता शिक्षा का उद्देश्य होता है कि मानव को सही अर्थों में मानव बनाया जाए। उसमें आत्मनिर्भरता की भावना को उत्पन्न करें, देशवासियों का चरित्र निर्माण करें, मनुष्य को परम पुरुषार्थ की प्राप्ति कराना लेकिन आज यह सब केवल पूर्ति के साधन बनकर रह गए हैं। नैतिक मूल्यों का निरन्तर ह्रास किया जा रहा है। आजकल के लोगों में श्रद्धा जैसी कोई भावना ही नहीं रह गई है। गुरुओं का आदर और माता-पिता का सम्मान नहीं किया जाता है। विद्यार्थी वर्ग ही नहीं बल्कि पूरे समाज में अराजकता फैली हुई है। ये बात स्वयं ही पैदा होती है कि हमारी शिक्षण व्यवस्था में आखिरकार क्या कमी है? कुछ लोग इस बात पर अधिक बल दे रहे हैं कि हमारी शिक्षा प्रणाली में नैतिक शिक्षा के लिए भी जगह होनी चाहिए। कुछ लोग इस बात पर बल दे रहे हैं कि नैतिक शिक्षा के बिना हमारी शिक्षा प्रणाली अधूरी है।
उपसंहार आज के भौतिक युग में नैतिक शिक्षा बहुत ही ज़रूरी है। नैतिक शिक्षा ही मनुष्य को मनुष्य बनाती है। नैतिक शिक्षा से ही राष्ट्र का सही अर्थों में निर्माण होता है। नैतिक गुणों के होने से मनुष्य संवेदनीय बनता है। आज के युग में लोगों के सर्वांगीण विकास के लिए नैतिक शिक्षा बहुत ही जरूरी है। नैतिक शिक्षा से ही कर्तव्यनिष्ठ नागरिकों का विकास होता है।