नर हो न निराश करो मन को: हिंदी निबंध

संकेत बिन्दु प्रस्तावना, निराशा की भावना का जन्म, असफलता भी आवश्यक है, निराशा एक हीनभावना, आशावादी दृष्टिकोण के लाभ, उपसंहार।

प्रस्तावना अगर सफलता मंजिल है, तो असफलता वह रास्ता है, जो हमें इस मंजिल तक पहुँचाता है। यही वजह है कि महापुरुषों ने इन दोनों में ही आशा की किरण देखी है। छोटी-छोटी असफलताएँ ही आगे चलकर बड़ी सफलता का आधार बनती हैं।

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निराशा की भावना का जन्म आज के कुछ नादान और कमजोर लोग भले ही छोट-मोटी नाकामयाबी से भी निराश होकर जीवन से हार मान लेते हों, लेकिन जुझारू लोग अपनी किश्ती इस तूफान में भी पार लगाने में कामयाब हो जाते हैं। यदि असफलता का एकमात्र ‘उपाय’ आत्महत्या ही होता, तो दुनिया में सभी सफल व्यक्ति खत्म हो चुके होते, क्योकि आज के सभी सफल व्यक्ति अपने जीवन में कभी-न-कभी असफल जरूर हुए हैं। यहाँ तक कि भगवान ने भी मनुष्य रूप में जन्म लेकर तरह-तरह के कष्ट उठाए और कई ‘असफलताएँ’ भी झेली।

असफलता भी आवश्यक है दुनिया में ऐसे न जाने कितने लोग हैं, जो किसी एक क्षेत्र में अच्छा काम नहीं कर सकें और लगातार असफल होते रहे, लेकिन निरन्तर प्रयास व मेहनत के बाद जब उन्हें कामयाबी मिली, तो वे पूरे संसार के सामने एक मिसाल साबित हुए। जीवन में हारना भी जरूरी है।

निराशा एक हीनभावना निराशा मानव मस्तिष्क में हीनभावना को जन्म देती है। कभी-कभी व्यक्ति निराश होकर आत्महत्या तक कर बैठता है। आत्महत्या सफलता के सारे रास्ते बन्द कर देती है, इसलिए स्वयं को एक और मौका देने का रास्ता हमेशा आपके पास होना चाहिए। किसी भी संकट में धैर्य ही काम आता है। परिस्थितियों से घबराकर पीठ दिखाने वालों से तो भगवान भी किनारा कर लेता है, क्योंकि वह भी हमारे अन्दर ही है। सफलता उनका ही साथ देती है, जो हर पल आशा की डोर थामे रहते हैं।

आशावादी दृष्टिकोण के लाभ आशा मनुष्य को हमेशा सफलता का स्वाद चखाती है, जबकि निराशा हमेशा असफल बनाती है। सामने चाहे कितना ही अँधेरा क्यों न हो, लेकिन अगर आप रोशनी की आस में चलते रहेंगे, तो उस तक पहुँच ही जाएँगे। जीवन में किसी परीक्षा में फेल होने का यह मतलब नहीं है कि पूरा जीवन ही बेकार हो गया है। एक बार असफल हो जाने के बाद दोगुने उत्साह से फिर से पूरी तैयारी के साथ जुट जाएँ और अगली पिछली सभी कमियों को खत्म कर दें। मनुष्य का बेड़ा अपने ही हाथ में है, उसे वह चाहे जिस ओर पार लगाए। शुक्ल जी की ये पंक्तियाँ हमें आत्मविश्वास न खोने की प्रेरणा देती हैं। मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है, उसके पास मन है, तो विवेक भी है। मन यदि भटकता है, तो विवेक उसे सही राह दिखाता है। यही कारण है कि विकट से विकट परिस्थितियों में जो मनुष्य अपना धैर्य नहीं खोता, हिम्मत नहीं हारता, वह अपने विवेक के बल पर अपने विश्वास को कभी कम नहीं होने देता। ऐसा ही मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाता है। जीवन में अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य को निरन्तर संघर्ष करना पड़ता है। ऐसे में यदि वह हार मान ले, निराश हो जाए तो सभी साधनों से सम्पन्न होते हुए भी उसकी स्थिति एकदम हीन हो जाती है। वह कभी सीधा खड़ा नहीं हो पाता है, जबकि वित्त की दृढ़ता के बल पर मनुष्य असम्भव को भी सम्भव बना देता है। जिसने अपने मन को जीत लिया, सफलता उसके कदम चूमती है। आशावान व्यक्ति के सामने भाग्य भी घुटने टेक देता है। अपने मन में निराशा लाए बिना कर्म करने पर ही हम सारे संकल्पों को पूर्ण कर सकते हैं।
उपसंहार जिन्दगी की विषम परिस्थितियों से जूझते हुए अक्सर हम निराश होने लगते हैं; नतीजा यह होता है, कि हम अपनी क्षमताओं को खोते जाते हैं। दरअसल होता यह है कि निराशा हम पर इस कदर हावी होने लगती है कि हमें चीजें जितनी बुरी होती हैं, उससे कहीं ज्यादा बुरी लगने लगती हैं। इन्हीं अवसादों में घिरते हुए हम अपनी नैसर्गिक प्रतिभाएँ भी खोने लगते हैं। मन ही मन घुटने लगते हैं। बस यहीं हम गलत हो जाते हैं। क्योंकि हम अपनी प्रतिभा को नजर अन्दाज कर खुद ही हीनता के शिकार होने लगते हैं। निराशा दूर करने के लिए सबसे पहले अपने काम को ईमानदारी से करना शुरू कीजिए, सबसे बड़ा संबल यही होता है। यह बात ध्यान में रखिए, न ही आपको निराश होना है और न ही अपने मन को निराश करना है। हमेशा जीवन में सकारात्मक तथा आशावादी दृष्टिकोण को अपनाकर सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए ऊँचे से ऊँचा लक्ष्य प्राप्त करने का निरन्तर प्रयास करना चाहिए। कभी भी निराशा को अपने मन में स्थान नहीं देना चाहिए।

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