संकेत बिन्दु प्रस्तावना, पर-उपदेश से सम्बन्धित कुछ उदाहरण, उपसंहार।
प्रस्तावना अपने जीवन में आपने ऐसे बहुत से लोगों को देखा होगा जो कि दूसरों को सरलता से उपदेश दे देते हैं, परन्तु अपने जीवन में उन उपदेशों का बिलकुल भी पालन नहीं करते। किसी भी उपदेश का प्रभाव अधिक पड़ता है, जब उपदेशक स्वयं भी उन उपदेशों का अनुपालन करता है। अन्यथा उसका उपदेश देना निरर्थक है। जीवन में कभी-कभी ऐसी परिस्थितियाँ आ जाती हैं कि हमें सामने वाले की कुछ बातें अनुचित लगती हैं और हम उसे उपदेश देने बैठ जाते हैं, परन्तु यहाँ महत्त्वपूर्ण यह है कि क्या उन उपदेशों को हमने भी अपने जीवन में उतारा है या नहीं।
पर उपदेश से सम्बन्धित कुछ उदाहरण यहाँ हम कुछ उदाहरणों के माध्यम से इस विषय पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे। एक बार एक महिला अपने लड़के को लेकर महात्मा गाँधी के पास पहुँची। उसने उनसे कहा-महात्मा जी मेरा बेटा मीठा बहुत ज्यादा खाता है। आप इसे समझाइए। गांधी जी ने कहा- आप अगले सप्ताह आना, मैं इसे समझा दूँगा। एक सप्ताह गुजर जाने के बाद वह महिला अपने बच्चे को लेकर गांधीजी के पास आई। उस समय गांधी जी ने उसके बच्चे को समझाया कि बेटा, मीठा कम खाया करो। ज्यादा मीठा खाना सेहत के लिए हानिकारक होता है। लड़का बोला-ठीक है, अब से मैं कम मीठा खाया करूँगा। महिला चकित रह गई। गांधी जी से बोली-महात्मा जी यह बात तो आप तब भी बोल सकते थे। गांधी जी ने उत्तर दिया-उस समय मैं स्वयं ज्यादा मीठा खाता था। गांधी जी की इस बात का उस महिला पर बहुत प्रभाव पड़ा। अतः हमें यदि किसी अनुचित बात के लिए किसी भी व्यक्ति या बालक को टोकना है, तो पहले यह जाँच कर लेना आवश्यक है कि वह अनुचित कार्य कहीं हम स्वयं तो नहीं करते।
दूसरा अन्य प्रसंग भी गांधी जी से ही सम्बन्धित है। एक बार महात्मा गांधी जी की पत्नी कस्तूरबा देवी बीमार पड़ गईं। डॉक्टर ने गांधी जी से कहा कि कस्तूरबा को कहिए कि वे अपने आहार में नमक लेना बन्द कर दें। गांधी जी ने पहले स्वयं नमक खाना छोड़ा बाद में अपनी पत्नी को नमक खाने से मना किया। दूसरे को समझाने से पहले हमें सर्वप्रथम स्वयं में झाँक लेना चाहिए।
उपसंहार अतः स्पष्ट है कि उपदेशक द्वारा कही गई बातों का अनुसरण सभी लोग तब ही करेंगे, जब वह स्वयं भी उसे आचरण में लाता हो। जब तक स्वयं उपदेश देने वाला जीवनानुभवों से न जुड़ा हो, तब तक उसके उपदेशों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। मेघनाद वध के समय रावण द्वारा दिए गए नीति के उपदेशों के सम्बन्ध में तुलसीदास जी ने इस पंक्ति की रचना की थी कि ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’
रावण के यह वचन निरर्थक थे, क्योंकि वह स्वयं उनका पालन नहीं करता था। अतः योग की शिक्षा देने से पहले स्वयं योगी बनना पड़ता है, जब जाकर लोगों पर उस शिक्षा का प्रभाव पड़ता है।